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लगातार प्रयास से ही मिलती है सफलता

एक व्यक्ति कहीं जा रहा था। अचानक उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा और वह रुक गया। उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है। उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी-सी रस्सी से बंधे हुए हैं। वे चाहते तो खुद को आजाद कर सकते थे, पर वे ऐसा नहीं कर रहे थे। उसने पास खड़े महावत से पूछा, ‘‘भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास भी नहीं कर रहे हैं।’’ महाव त ने कहा, ‘‘इन हाथियों को छोटी उम्र से ही इन रस्सियों से बांधा जाता है। उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती कि इस बंधन को तोड़ सकें। बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी न तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वे इन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते और बड़े होने पर भी उनका यह यकीन बना रहता है। इसीलिए वे कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते।’’ उस आदमी को यह बात बड़ी रोचक लगी। उसने इसके बारे में एक संत से चर्चा की। संत ने मुस्कराकर कहा, ‘‘ये जानवर इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि उनके मन में इस बात का विश्वास बैठ जाता है कि उनमें उन ...

33 करोड़ या 33 कोटि देवता

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33 करोड़ या 33 कोटि देवता देवता कहते है देने वाले को हिन्दू धर्म को भ्रमित करने के लिए अक्सर देवताओं की संख्‍या 33 करोड़ बताई जाती रही है। धर्मग्रंथों ( वेद ) में देवताओं की 33 कोटी ब...

मनुवाद और ब्राह्मणवाद

क्या है मनुवाद : जब हम बार-बार मनुवाद शब्द सुनते हैं तो हमारे मन में भी सवाल कौंधता है कि आखिर यह मनुवाद है क्या? महर्षि मनु मानव संविधान के प्रथम प्रवक्ता और आदि शासक माने जाते हैं। मनु की संतान होने के कारण ही मनुष्यों को मानव या मनुष्य कहा जाता है। अर्थात मनु की संतान ही मनुष्य है। सृष्टि के सभी प्राणियों में एकमात्र मनुष्य ही है जिसे विचारशक्ति प्राप्त है। मनु ने मनुस्मृ‍ति में समाज संचालन के लिए जो व्यवस्थाएं दी हैं, उसे ही सकारात्मक अर्थों में मनुवाद कहा जा सकता है। मनुस्मृति : समाज के संचालन के लिए जो व्यवस्थाएं दी हैं, उन सबका संग्रह मनुस्मृति में है। अर्थात मनुस्मृति मानव समाज का प्रथम संविधान है, न्याय व्यवस्था का शास्त्र है। यह वेदों के अनुकूल है। वेद की कानून व्यवस्था अथवा न्याय व्यवस्था को कर्तव्य व्यवस्था भी कहा गया है। उसी के आधार पर मनु ने सरल भाषा में मनुस्मृति का निर्माण किया। वैदिक दर्शन में संविधान या कानून का नाम ही धर्मशास्त्र है। महर्षि मनु कहते है- धर्मो रक्षति रक्षित:। अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यदि वर्तमान संदर्भ में कहें तो ज...

जहाँ तक मुझे ज्ञात है, रामायण, महाभारत आदि मान्य ऐतिहासिक ग्रंथो में, एक न एक ऐसा स्थान अवश्य पाया जाता है,

जहाँ तक मुझे ज्ञात है, रामायण, महाभारत आदि मान्य ऐतिहासिक ग्रंथो में, एक न एक ऐसा स्थान अवश्य पाया जाता है, जहाँ ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रतीक स्वरुप कोई न कोई भवन व स्थल बनाया गया हो, यही बात ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रतीक स्वरुप में अयोध्या में श्री राम का मंदिर कहता हु, मैंने कभी नहीं कहा की श्री राम की मूर्ति आदि को धुप दीप आदि से पूजा किया जाए। हाँ में शौर्य और पराक्रम से भरपूर हमारे ऐतिहासिक महापुरुष श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण का समर्थन करता हु, ये मेरा निजी विचार है, पता नहीं कुछ लोग मेरे इस निजी विचार को आर्य समाज विचारधारा से जोड़कर क्यों देखते हैं ? क्या मैं अपने निजी विचार साँझा नहीं कर सकता ? क्या नेपाल में माता जानकी का भव्य मंदिर नहीं है ? क्या महाभारत काल में महापुरुषों के लिए निर्मित स्थल नहीं होते थे ? क्या अर्जुन के रथ पर जो पताका थी उसमे अनेको महापुरुषों के प्रतीक चिन्ह प्रयोग नहीं किये गए थे ? क्या रामायण काल में परशुराम जी को दिया गया धनुष, जनक महाराज के महल की शोभा में पराक्रम के प्रतीक तौर पर नहीं रखा गया था ? क्या रामायण काल में इक्ष्वाकु वंश के...

"यज्ञ-प्रार्थना"

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"यज्ञ-प्रार्थना" हे यज्ञरूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए। छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए॥१॥ वेद की बोलें ऋचाएं सत्य को धारण करें। हर्ष में हों मग्न सारे शोक सागर से तरें॥२॥ अश्वमेधादिक रचाएं यज्ञ पर उपकार को। धर्म मर्यादा चलाकर लाभ दें संसार को॥३॥ नित्य श्रध्दा भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें। रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें॥४॥ भावना मिट जाये मन से पाप-अत्याचार की। कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नर नार की॥५॥ लाभकारी हो हवन हर प्राणधारी के लिए। वायु जल सर्वत्र हो शुभ गंध को धारण किए॥६॥ स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो। इदन्न मम का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हों ॥७॥ हाथ जोड़, झुकाए मस्तक, वंदना हम कर रहे। नाथ करुणा रूप करुणा आप की सब पर रहे॥८॥ हे पूजनीय प्रभो! हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए। छोड़ देवें छल कपट को मानसिक बल दीजिए॥ प्रचंड प्रज्ज्वलित हुई हे यज्ञ की अग्नि! तू मोक्ष के मार्ग में पहला पग है......... ॥ओ३म्॥

ईश्वर स्तुति प्रार्थना मन्त्र:

"ओ३म् विश्वानी देव सवितर्दुरितानी परा सुव। यद् भद्रं तन्न् आ सुव॥१॥ (यजुर्वेद ३०/३) तू सर्वेश सकल सुखदाता, शुद्धस्वरूप विधाता है। उसके कष्ट नष्ट हो जाते, शरण तेरी जो आता है। सारे दुर्गुण दुर्व्यसनो से, हमको नाथ बचा लीजे। मंगलमय! गुण-कर्म-पदार्थ प्रेम- सिन्धु हमको दीजे। -मोहित आर्य

पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता अवश्य है

पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता अवश्य हैं प्रेरक प्रसंग राम और श्याम दो मित्र थे। दोनों ने दूध बेचने का व्यापार आरम्भ किया। राम स्वाभाव से ईमानदार, शांतिप्रिय, सज्जन व्यवहार का ...